जीयर स्वामी ने चातुर्मास व्रत के दौरान प्रवचन में स्रोताओं को बताया कि परोपकार, दया के समान दुसरा कोई धर्म नहीं है और सत्य के समान दुसरा कोई तप नहीं है। सदाचार के समान दुसरा कोई व्रत नहीं है। इन तीन बातों के ध्यान रखना चाहिए। सदाचार, सत्य, दया का बड़ा महत्व है। यह बातें जीयर स्वामी ने कही। वह रविवार को जनेश्वर मिश्र सेतु के पास प्रवचन कर रहे थे। कहा कि बेटा बेटी के जन्म के ग्यारहवां या बारहवें दिन नामकरण कर देना चाहिए। शास्त्र का नियम है कि लड़का या लड़की के जन्म लेने के बाद नियम तो यह है कि माता पिता ही नामकरण करें। यदि पुरोहित करेंगे, कोई और रिश्तेदार नामकरण करेंगे तो यह भी ठीक है। ग्यारहवां या बारहवें दिन नामकरण हो जाना चाहिए। कन्याओं का नाम लक्ष्मी संबंधी नाम रखिए और बालकों का नाम भगवान संबंधी रखिए। क्योंकि बेटा, बेटी के पुकारने के बहाने तो भगवान का नाम आ गया न। यह विचार कर भगवान संबंधी नाम रखना चाहिए। विपत्ति को विपत्ति नहीं, संपत्ति को संपत्ति नहीं समझना चाहिए। हमारे पास जो विपत्ति आता है तो महापुरूष लोग यह मानते हैं कि जो मैने किया था उसका मार्जन हो गया। ऐश्वर्य इत्यादि आया तो यह मानते हैं कि सुकृत कर्म कम हो गया ऐसा मानते हैं। सबसे बडा विपत्ति वह है जिसमें हम परमात्मा को भूल जाएं। उनकी संस्कृति, संदेश को भूल जाएं। जिस विपत्ति में हमारे घर में,परिवार में रहन-सहन, उठन-बैठन, बोल चाल, खान पान, सब जहां बिगड़ जाए तो समझना चाहिए सबसे बड़ा विपत्ति यहीं है। यह विपत्ति का समाधान एक मात्र विनाश है। सर्वनाश के अलावा कोई दूसरा उपाय नही है। जहां भगवान नारायण की स्मृति हो जाय। घर परिवार की स्थिति थोड़ी दयनीय हो जाए। जिसने संकल्प ले लिया कि चोरी, बेईमानी, अनीति, अन्याय, कुकर्म, अधर्म नही करूंगा सबसे बड़ा श्रेष्ठ कर्म वह है। एक दिन वह परिवार ऊंचाई पर चढ़ेगा।