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कृषि विज्ञान केन्द्र में किया गया एक दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन

कृषि विज्ञान केंद्र, बिक्रमगंज, रोहतास में औषधीय एवं सुगंधित फसलों की वैज्ञानिक खेती, प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन एवं विपणन विषय पर एक दिवसीय प्रशिक्षण सह जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता वरीय वैज्ञानिक सह केन्द्र प्रधान डॉक्टर शोभा रानी ने किया। यह कार्यक्रम भारत सरकार के वैज्ञानिक औद्योगिक अनुसंधान परिषद, सीएसआईआर -आई आई एम, जम्मू के द्वारा प्रायोजित था।

 

इस कार्यक्रम में किसानों को संबोधित करते हुए डॉक्टर शोभा रानी ने बताया कि कृषि विविधिकरण के तहत किसानों की आय बढ़ाने और औषधीय एवं सुगंधित तेल की राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए किसानो के द्वारा मौजूदा फसल प्रणाली में औषधीय एवं सुगंधित पौधों की खेती बहुत उपयुक्त है। इस प्रकार ग्रामीण स्तर पर इन फसलों की बेहतर किस्म का विकास या प्रदर्शन करके किसानों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति मे सुधार की अपार संभावना है।

 

जम्मू से आए हुए प्रधान वैज्ञानिक डॉक्टर सभाजीत ने किसानों को बताया कि कई उच्च मूल्य वाली औद्योगिक फसलों और उनकी किस्म का विकास किया गया है। जो पारंपरिक फसलों की तुलना में उच्च मूल्य और अधिक आर्थिक लाभ प्रदान करती हैं। इन फसलों को वर्षा आधारित क्षेत्रों में उगाया जा सकता है। परंपरागत खाद्य फसलों की खेती बिना प्रभावित हुए बंजर भूमि, कम सिंचित क्षेत्र, शुष्क भूमि और वर्षा आधारित क्षेत्र पर की जा सकती है। सुखा सहन करने वाली इन फसलों की खेती इस क्षेत्र की किसानों की आय और कृषि टीकाऊपन के लिए एक वरदान स्वरुप है। इसके अतिरिक्त उद्यमिता विकास को भी आकर्षित करने में यह एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उन्होंने काफी विस्तार में इन फसलों की वैज्ञानिक खेती एवं उपयुक्त जलवायु की स्थिति के बारे में बताया।

 

कार्यक्रम का संचालन केंद्र के उद्यान वैज्ञानिक डॉक्टर रतन कुमार ने किया। इस कार्यक्रम में केंद्र के अन्य वैज्ञानिक आर के जलज, डॉ रमाकांत सिंह, डॉक्टर डेनियल, संजू कुमारी ने अपने विचार व्यक्त किया।

 

इस कार्यक्रम में जिले के विभिन्न गांवो जैसे कोचस, दावथ, नोहटा, मोथा, तराई, बारुद, सुरहुरिया, दिनारा, मसौना, नासरीगंज, हुक्काडिह, करमैनि, शिवेबहार, अलीगंज, जमुआरा, रकासियां इत्यादि से आए हुए 76 किसानों ने भाग लिया। कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन केंद्र के मृदा वैज्ञानिक डॉ रमाकांत सिंह के द्वारा किया गया।

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