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सच्चे कर्तव्यपथ हमेशा सुखों का द्वार खोलता है- प्रभंजनानंद

समय के बदलते परिवेश में पूंजीवाद के चक्कर में लोग सच्चे सुख को छोड़कर क्षणिक सुख के पथ पर चलने लगते हैं जिसके फलस्वरूप उनका लौकिक जीवन भले ही कुछ देर के लिए सुखी हो लेकिन पारलौकिक जीवन कभी सुखी नहीं रहता है। मनुष्यों को अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है। इसलिए सभी को चाहिए कि सच्चे कर्म पथ पर चले। क्योंकि इससे आत्म संतुष्टि मिलती है। आत्म संतुष्टि से मनुष्य का मन स्वस्थ रहता है तथा अच्छे विचार दिमाग में आते रहते हैं। जिससे जीवन सुखमय हो जाता है। मानव के आदर्श चरित्र का यथार्थ वर्णन अगर कहीं जानना है तो श्रीमद् भागवत कथा को अवश्य सुनना चाहिएं |

 

भौतिक वस्तुओं को हम महत्व देते हैं लेकिन उन भौतिक वस्तुओं का एक ही काम है कि वह परमात्मा से हमें दूर रखने का कार्य करती है। संसार मेहंदी के पत्ते की तरह ऊपर से तो हरा दिखता है लेकिन परमात्मा की लाली से परिपूर्ण है।दुख भगवान के द्वारा दिया गया कोई दंड नहीं है बल्कि यह हमारे कर्मों का फल है। यदि सच में सुखी होना चाहते हैं तो फिर उन रास्तों का त्याग करें जिन रास्तों पर चलने से दुख होता है। मन में कोई बोझ मत रखिए, मस्त रहिए, अस्त व्यस्त नहीं रहिए ,खुश रहिए और मुस्कुराते रहिए।

 

करपी,अरवल: प्रखंड क्षेत्र के बंभई गांव में आयोजित श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए अयोध्या के प्रसिद्ध कथा वाचक श्री प्रभंजनानंद जी महाराज ने कहां की सच्चा कर्तव्य पथ हमेशा सुखों का द्वार खोलता है। श्रीमद् भागवत गीता में इसी सच्चे कर्तव्य पथ पर चलने की प्रेरणा मनुष्यों को दी गई है।समय के बदलते परिवेश में पूंजीवाद के चक्कर में लोग सच्चे सुख को छोड़कर क्षणिक सुख के पथ पर चलने लगते हैं जिसके फलस्वरूप उनका लौकिक जीवन भले ही कुछ देर के लिए सुखी हो लेकिन पारलौकिक जीवन कभी सुखी नहीं रहता है। मनुष्यों को अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है।

 

इसलिए सभी को चाहिए कि सच्चे कर्म पथ पर चले। क्योंकि इससे आत्म संतुष्टि मिलती है। आत्म संतुष्टि से मनुष्य का मन स्वस्थ रहता है तथा अच्छे विचार दिमाग में आते रहते हैं। जिससे जीवन सुखमय हो जाता है। मानव के आदर्श चरित्र का यथार्थ वर्णन अगर कहीं जानना है तो श्रीमद् भागवत कथा को अवश्य सुनना चाहिए।

 

भौतिक वस्तुओं को हम महत्व देते हैं लेकिन उन भौतिक वस्तुओं का एक ही काम है कि वह परमात्मा से हमें दूर रखने का कार्य करती है। संसार मेहंदी के पत्ते की तरह ऊपर से तो हरा दिखता है लेकिन परमात्मा की लाली से परिपूर्ण है।दुख भगवान के द्वारा दिया गया कोई दंड नहीं है बल्कि यह हमारे कर्मों का फल है। यदि सच में सुखी होना चाहते हैं तो फिर उन रास्तों का त्याग करें जिन रास्तों पर चलने से दुख होता है। मन में कोई बोझ मत रखिए, मस्त रहिए, अस्त व्यस्त नहीं रहिए ,खुश रहिए और मुस्कुराते रहिए।

Rajnish Ranjan
Author: Rajnish Ranjan

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