भिखारी को आम तौर पर लोगों से मांग कर गुजारा करने वाला संसाधनविहीन आदमी माना जाता है। लोग उसपर दया करके भीख में पैसे या कोई सामान दे देते हैं। लेकिन आज के डिजिटल युग में बिहार का एक भिखारी भी डिजिटल (Digital Beggar) हो गया है। राज्य के बेतिया रेलवे स्टेशन व आसपास के इलाकों में देखा जाने वाला राजू हाथ में टैब व गले में स्कैनर लेकर चलता है। अगर खुल्ले नहीं हैं तो क्यूआर कोड से स्कैन करवाकर डिजिटल भीख लेता है। खास बात यह कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) का जबरदस्त फैन है तथा राष्ट्रीय जनता दल (RJD( सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) को पिता जैसा मानता है। केवल तीसरी कक्षा तक पढ़ा राजू बेतिया रेलवे स्टेशन व आसपास के इलाके में भीख मांग कर गुजारा करता था। उसकी परेशानी यह थी कि कई बार लोग ई-वॉलेट की बात करते हुए छुट्टे नहीं होने की बात कहकर टाल देते थे। एक बार किसी रेल यात्री ने तंज कसा कि क्या गूगल-पे कर दूं? क्यूआर कोड दो! राजू के जेहन में यह बात घुस गई।
फिर क्या था, राजू ने स्टेशन के दुकानदारों से पूरी जानकारी इकट्ठा की। भीख में मिले 18 हजार रुपयों से सैमसंग का टैब खरीदा। दुकानदारों की सहायता से ही क्यूआर कोर्ड स्कैनर की जानकारी लेकर उसे खरीदा और उनसे ही डिजिटल ट्रांजेक्शन सीखी। तीसरी कक्षा तक पढ़ा होने के बावजूद डिजिटल तकनीक को सीखकर आज वह उसे आसानी से हैंडल कर रहा है। राजू बताता है कि अब यात्री खुल्ले पैसे नहीं होने पर भी डिजिटल भीख देते हैं। साथ ही वह स्टेशन पर जरूरतमंद यात्रियों और दुकानदारों से अपने अकाउंट में पैसे लेकर उन्हें कैश भी देता है।
बेतिया के व्यवसायी रमाकांत सहनी बताते हैं कि राजू बेतिया रेलवे स्टेशन पर बचपन से भीख मांगता है। उनके अनुसार भीख मांगने के लिए ‘गूगल-पे’ और ‘फोन-पे’ के ई- वॉलेट का इस्तेमाल करने वाला राजू संभवत: देश का पहला ‘डिजिटल’ प्रोफेशनल भिखारी है। लेकिन सवाल यह है कि एक भिखारी ने अपना बैंक खाता कैसे खोला? राजू बताते हैं कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बड़े फैन हैं। वह प्रधानमंत्री के डिजिटल इंडिया से प्रभावित होकर अपना भी बैंक खाता खोलना चाहता था, लेकिन इसके लिए बैंक ने आधार कार्ड और पैन कार्ड मांगे। आधार कार्ड पहले से बनवा रखा था, लेकिन पैन कार्ड बनवाना पड़ा। इसके बाद इसी साल के आरंभ में बेतिया में स्टेट बैंक आफ इंडिया की मुख्य शाखा में खाता खुलवाया। फिर तो ई-वॉलेट भी बन गया।
राजू आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का भी बड़ा फैन रहा है। लालू के रेल मंत्री रहते एक बार बेतिया रेलवे स्टेशन पर उनसे हुई मुलाकात की चर्चा करते हुए राजू बतात है कि इसके बाद तो वह पश्चिम चंपारण जिले में लालू के सभी कार्यक्रमों में जरूर पहुंचता था। साल 2005 में लालू के आदेश पर उसे सप्तक्रांति सुपर फास्ट एक्सप्रेस के पैंट्री कार से रोज भोजन मिलने लगा था। यह सिलसिला साल 2015 में टूटा। कहता है कि लालू ने उसे बिहार में मुफ्त रेल यात्रा भी कराई थी। इसके बाद तो वह लालू को पिता की तरह मानने लगा।
सरल स्वभाव के राजू की निजी जिंदगी परेशानी भरी रही है। मां की मौत के बाद पिता ने दूसरी शादी कर ली थी। बचपन में एक बार घर से भागा तो कब भिखारी बन गया, पता ही नहीं चला। अब तो वह बेतिया शहर में जाना-पहचाना चेहरा है, स्थानीय लाेग भी उसकी मदद करते हैं। राजू की यह कहानी सिस्टम के नकारापन को भी खोलकर रख देती है। भिखारी का यह धंधा कितना वैध है, इसकी बात नहीं करते हुए हम यह बताना चाहते हैं कि इससे गरीबों के लिए चलाई जाने वाली समाज कल्याण की योजनाओं की वास्तविकता उजागर हो गई है। वह स्टेशन परिसर में भीख कैसे मांगता है, यह सवाल भी है। बेतिया के स्टेशन अधीक्षक कहते हैं कि स्टेशन पर भीख मांगने की अनुमति नहीं है, लेकिन गौर करने की बात यह है कि राजू स्टेशन पर हीं तत्कालीन रेल मंत्री तक से बतौर भिखारी मिल चुका है।