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बिक्रमगंज अनुमंडल के 40वें स्थापना दिवस पर नहीं हुआ किसी समारोह का आयोजन

बिक्रमगंज अनुमंडल के 40वां स्थापना दिवस पर सरकारी स्तर पर कोई समारोह आयोजित नहीं किते जाने से लोगों में काफी नाराजगी है। विदित हो कि 39 वर्ष पूर्व 9 अप्रैल 1984 को बिक्रमगंज अनुमंडल बना था । 9 अप्रैल बिक्रमगंज अनुमंडल का स्थापना दिवस है। लेकिन विडंबना यह है कि इस दिन सरकारी स्तर पर कोई कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया गया। जबकि जिला का स्थापना दिवस काफी धूमधाम से प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा मनाया जाता है।

 

इससे भी अधिक दुर्भाग्य यह है कि स्थापना दिवस के 39 वर्ष बाद भी अनुमंडल कार्यालय उसी किराये के भवन में चल रहा है, जिसमें इसका उदघाटन हुआ था। तब से लेकर आज तक अनुमंडल के कई कार्यालय और पदाधिकारियों के आवास किराये पर चल रहे हैं। काफी जदोजहद के बाद मार्च 2021 में बिक्रमगंज प्रखंड कार्यालय को मुख्य शहर से दूर सलेमपुर स्थित नवनिर्मित सरकारी भवन में स्थानांतरित किया गया है।

 

जबकि एक तरफ 2004 से ही सिविल कोर्ट के साथ अनुमंडल पदाधिकारियों के लिए करियवा बाल पर बने भवन अब तकरीबन खंडहर में तब्दील हो चुके हैं। इसके साथ ही अनुमंडल कोर्ट और सिविल कोर्ट को एक साथ करने की कवायद भी लगभग ठंढे बस्ते में जा चुकी है। अभी कुछ दिनों से अनुमंडल कोर्ट भवन धावां पुल के समीप बनाने की बात चल रही है। यहाँ यह सोचने वाली बात है कि 39 वर्षों में कोई भी बिहार सरकार बिक्रमगंज में एक मुख्य अनुमंडल भवन क्यों नहीं बना सकी है और बने भवनों का कोई उपयोग क्यों नहीं कर सकी है ? सरकार के साथ यहाँ के तथाकथित जनप्रतिनिधि, समाजसेवी एवं लोकसेवकों ने कैसी सेवा की है ? 39 वर्षों के बाद अनुमंडल के महत्वपूर्ण प्रशासनिक व्यवस्था और भवन राजनैतिक एवं सरकारी उदासीनता के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। बिक्रमगंज के तथाकथित विकास वर्तमान स्वरूप यहाँ के लोगों की जागरूकता और गंभीरता का स्वतः गवाही देता है और प्रमाणित करता है कि समाज में सामूहिक चेतना का घोर आभाव है ।

विकास के नाम पर स्थानीय स्तर पर अभी भी व्यवसायिक एवं तकनीकी शिक्षण संस्थान का आभाव है। इसके अलावा उपयुक्त नगर योजना का अभाव है। आधुनिक उद्योग धंधों का अभाव है। आधारभूत मुद्दों के प्रति लोगों एवं व्यवस्था की घोर लापरवाही और उदासीनता बिक्रमगंज के विकास के स्वयं प्रमाण हैं। कायदे से बिक्रमगंज को बहुत पहले जिला घोषित हो जाना चाहिये था। क्षेत्रफल और जनसंख्या के हिसाब से बिहार के कई जिले बिक्रमगंज से छोटे हैं। लेकिन 39 वर्षों में सरकारें जहाँ ढंग से प्रशासनिक ढाँचा विकसित नहीं कर सकी हैं, वहाँ आगे क्या उम्मीद किया सकता है ? अनुमंडल बनने के 20 वर्षों के बाद 25 सितंबर 2004 को सिविल कोर्ट, जेल एवं 29 जून 2015 को सब जज कोर्ट का उद्घाटन हुआ तथा 20 दिसंबर 2006 से रेल परिचालन शुरू हुआ। इस प्रकार इसके विकास की गति को देखते हुये अन्य तमन्नाओं को पूरा होने में अभी कई पीढ़ियों के बीत जाने का अंदेशा लगता है ।

 

बिक्रमगंज अनुमंडल के अनुमानित करीब 1160 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में 8 प्रखंड, 11 थाना, 2 नगर पंचायत, 1 नगर परिषद 98 ग्राम पंचायत तथा 10 लाख से अधिक की आबादी है। लेकिन अभी तक यहाँ ट्रेजरी का कार्यालय नहीं है। इसी तरह बिक्रमगंज में अनेकों सरकारी एवं प्रशासनिक व्यवस्थाओं की जरूरत है, क्योंकि इसके बिना वास्तविक विकास संभव नहीं है।आबादी और क्षेत्रफल के हिसाब से वर्तमान प्रशासनिक ढाँचे पर कार्यभार अधिक है। जिला स्तरीय प्रशासन के गठन से जनता का कार्य सहजता से हो सकता है। नये परिसीमन के अनुसार पूरा अनुमंडल क्षेत्र तीन लोक सभा और तीन विधानसभा क्षेत्रों को स्पर्श करता है। लेकिन कोई नेता, कोई पार्टी यह नहीं बताता है कि इससे क्षेत्र को विशेष लाभ क्या हुआ है ? क्या केवल राजनीतिक वर्चस्व और जातीय गणित को ध्यान में रख कर परिसीमन किया गया है ? क्या नये परिसीमन का विकास से कोई लेना देना नहीं है ?अनुमंडल में रोजगार, पर्यटन कृषि आधारित उद्योग की असीम संभावनाएं हैं। उपजाऊ भूमि को देखते हुये बिक्रमगंज को धान का कटोरा कहा जा सकता है। कहा जाता है कि यदि बिक्रमगंज में कृषि क्षेत्र का समुचित विकास हो जाये तो अकेले पूरे बिहार को भरपेट अन्न दे सकता है। इस लिहाज से बिक्रमगंज में कृषि आधारित उद्योग धंधों का भरपूर विकास किया जा सकता है, लेकिन राजनैतिक इच्छाशक्ति तथा सार्थक सामुहिक सामाजिक प्रयास के आभाव में इनका समुचित विकास नही हो पा रहा है।

 

उच्च न्यायालय पटना के अधिवक्ता सह स्थानीय निवासी कुलदीप नारायण दुबे कहते है कि बिक्रमगंज में एक स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्था होना चाहिए जो जाति, धर्म और राजनीतिक पार्टी से ऊपर उठकर केवल क्षेत्र और समाज के समुचित विकास के लिये काम करे। अभी तो क्षेत्र को शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, पानी, बिजली और निष्पक्ष भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन जैसी साधारण एवं आधारभूत चीजों के लिये ही तरसना है। ऐसे स्थिति में आम जनता को ही जागरूक होना पड़ेगा। हम किसी भी जाति, पार्टी, धर्म या विचारधारा के हो, हमारी आधारभूत जरूरतें तकरीबन एक जैसी होती हैं। बिक्रमगंज के विकास के लिये यहाँ के स्थानीय लोगों को ही तत्पर होना पड़ेगा। इसे अपना घर समझना हैं। जो भी हो हमें या हमारे प्रियजनों को यहीं रहना है। जब राजनीतिक दल गठबंधन करके न्यूनतम साझा कार्यक्रम बना सकते हैं, तो हम लोग भी अपने क्षेत्र के विकास और समरस समाज के लिये एक न्यूनतम साझा उदेश्य निर्धारित कर कार्य कर सकते हैं। हमलोगों को अपने देश दुनियाँ को सुधारने से पहले अपने क्षेत्र की बात कर लेना चाहिए। बस इसके लिये हम सबको अपने अपने संकीर्ण दायरे से बाहर निकलने जरूरत है।

 

चुनाव के वक्त क्षेत्र के एक से एक धुरंधर बेटा बेटी अचानक प्रकट होते हैं और विकास के बड़े बड़े दावे करते हैं लेकिन राजनीति की स्थिति को देखते हुये हमें इतना जरूर समझ लेना चाहिये कि जो समाज और क्षेत्र खुद का विकास चाहेगा वहीं विकसित हो सकता है। किसी नेता और राजनीतिक पार्टी के भरोसे यह कदापि संभव नहीं है। गहराई से विचार करने पर प्रतीत होता है कि अपने हालात के जिम्मेवार हमलोग खुद होते हैं। दूसरों की तरह यह दावा तो नहीं कर सकता कि मैं ही विकास करूँगा या कर सकता हूँ क्योंकि मैं जानता हूँ कि यह किसी अकेले आदमी के वश की बात नहीं है। इसलिए अपने क्षेत्र के विकास के लिये खुद पहल करें और इसके विकास के सहयोगी और भागीदार बनें। वर्तमान परिदृश्य में यही सर्वोत्कृष्ट मार्ग लगता है। उन्होंने कहा कि मैं सदैव बिक्रमगंज के लिये वकालत करता रहूँगा और यह कहता रहूँगा कि जब तक स्थानीय लोग तैयार और तत्पर नहीं होंगे, तब तक कोई सुधार या विकास नहीं होगा।

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