बलिया। संदीपाचार्य ‘मधुकर महाराज ने सोमवार की शाम बैरिया तहसील क्षेत्र के नवकागांव में चल रहे नौ दिवसीय रूद्रमहायज्ञ में जनकरपुर के सीता स्वयंबर में धनुषयज्ञ प्रसंग की कथा सुनाकर श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। महाराज ने श्रद्धालुओं को बताया कि राजा जनक द्वारा आयोजित स्वयंवर में धनुष तोड़ने के लिए देश-विदेश से आए सभी राजाओं ने अपना बल प्रयोग किया। लेकिन धनुष को तोड़ना तो दूर कोई हिला भी नहीं पाया। चूकि उनको अपने बल पर अभिमान था। जबकि श्रीराम माता सीता की तरफ तिरछी नजर से देखे तो उन्हें प्रेम में पुलकित पाया कि यह शुभ मुहूर्त जानकर गुरु विश्वामित्र ने राम को धनुष तोड़ने की आज्ञा दी और गुरु के आशीर्वाद से उन्हें सफलता मिली।
कथा को गति देते हुए ‘मधुकर महाराज ने मानस की चौपाई ‘विश्वामित्र समय शुभ जानी। बोले अति सनेह मय बानी, उठहु राम भंजहु भव चापा, मेटहु तासु जनक परितापा। इसके बाद श्रीराम पहले गुरु को प्रणाम करने के बाद धनुष को प्रणाम करके उठा लिए परंतु किसी ने धनुष को तोड़ते हुए नहीं देखा। गोस्वामी जी रामचरितमानस में लिखते हैं ‘ लेत चढ़ावत खैचत गाढ़े, काहुं न लखा देख सब ठाढे,तेहि छन राम मध्य धनु तोरा, भरे भुवन धुनि घोर कठोरा…। गुरु को व धनुष को प्रणाम करते तो सबने देखा, लेकिन श्रीराम द्वारा धनुष उठाते, चाप चढ़ाते किसी ने नहीं देखा। महाराज ने बताया कि शिवजी का धनुष जहाज का प्रतीक है। जबकि श्रीराम के भुजाओं का बल समुद्र यानि अथाह है। लिहाजा धनुष टूटने से जनक का संताप दूर हुआ। धनुष के टूटते ही जहां सखियां मंगल गीत गाने लगी। वहीं मां जानकी सोच त्याग कर आनंद में विभोर हो गयी।
पीठाधीश्वर वेंकटेश प्रपन्नाचार्य महाराज ने भागवत के चौथे स्कंद की कथा में श्रोताओं को बताया कि ब्राह्मण कुल की नित्य सेवा करने से शीघ्र ही चित्त शुद्ध हो जाता है और मनुष्य को ज्ञान और अभ्यास के बैगर ही परम शांति यानि मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। इस मौके पर पूर्व न्यायाधीश शिव ध्यान सिंह, बलवंत सिंह, संतोष सिंह, रामनाथ सिंह, रवि प्रताप सिंह, सेवक वीरेंद्र सिंह, प्रकाश तिवारी, गुप्तेश्वर सिंह, बिजली राम आदि सैकड़ों श्रोता भक्ति सागर में देर रात तक गोता लगाते रहे।