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प्रभु राम ने किया बालिका वध, तो हनुमान जी ने लंका को किया खाक

गाजीपुर। अतिप्राचीन रामलीला कमेटी हरिशंकरी के तत्वावधान में लीला के तेरहवें दिन 3 अक्टूबर शाम 7 बजे लंका मैदान में बन्देवाणी विनायको आदर्श रामलीला मण्डल के कलाकारों ने बालि सुग्रीव लड़ाई,  हनुमान सीता मिलन, लंका दहन और सुग्रीव से मित्रता के प्रसंग का मंचन किया।

 

लीला के दौरान के दौरान दर्शाया गया कि श्री हनुमान ने श्रीराम, लक्ष्मण को अपने दोनों कंधों पर विठाकर महराज सुग्रीव से मिलवाते हैं, तभी श्रीराम सुग्रीव से मित्रता करने के बाद सुग्रीव से बालि के सम्बन्ध में सारे घटनाओं को सुनकर सुग्रीव बालि के पास भेजते हैं कि जाओ बालि से युद्ध करो। श्रीराम के आदेश पर सुग्रीव बालि के दरवाजे पहुंचकर अपने बड़े भाई बालि को युद्ध के लिए ललकारता है। सुग्रीव भी ललकार सुनकर बालि दरवाजे पर आकर युद्ध की चुनौती को स्वीकार कर युद्ध करता है और सुग्रीव को मारकर अधमरा कर देता है। अंत में वह श्रीराम के पास आता है। जहां श्री राम ने उसे अपना माला पहनाकर अपना बल देकर भेजते हैं। पुनः सुग्रीव बालि को युद्ध के लिए ललकारता है। दोनों में घमासान युद्ध शुरू हो जाता है। श्रीराम युद्ध के दौरान सुग्रीव को हारता देख, वह छिपकर अपने बाणों से बालि का शव कर देते हैं। वह जमीन पर पड़ा श्रीराम से कहता है कि हे प्रभु धर्म हेतु अवतरे हूं गोशाई मोरहू मोहिव्याध की नाई। कहा कि हेराम आप विष्णु के अवतार हैं और आपने मुझे बहेलिये की तरह पेड़ की आड़ में छिपकर मुझे मारा दिया। मेरी दुश्मनी तो सुग्रीव से थी। हम दोनों भाईयों के बीच में आकर ठीक नहीं किया। तब श्रीराम ने कहा कि मैं अयोध्या के राजा दशरथ का पुत्र हूं। राजा पुत्र का कर्तव्य है कि अनुजवधु भार्गनी सुत नारी सुन सठ कन्या समए चारी। और इनहिं कुदृष्टि बिलो-कहि जोई। ताहिबधे कुछ पाप न होहि। श्रीराम के शास्त्रोक्त बाते सुनकर बाली ने कहा प्रभु अब आप इस पापी को अपने धाम भेजने का कष्ट करें।

 

अंत में श्रीराम बालि को अपने धाम भेज देते हैं। इसके बाद बालि को मारकर किष्किन्धा राज सुग्रीव को सौंप देते हैं। बालि के आग्रह पर बालिपुत्र अंगद को युवराज बना देते हैं। श्रीराम के आदेश को महाराज सुग्रीव आदेश देकर हनुमान को सीता का पता लगाने का आदेश देते हैं। श्री हनुमान सतयोजन समुन्द्र पार कर लंका के कोने-कोने में माता सीता का पता लगाते हैं। अंत में उनका भेंट श्री राम भक्त विभीषण से होता है। विभीषण सीता का पता बता देते हैं। हनुुमान जी, अशोक वाटिका में जाकर माता सीता से मिलते हैं। वह श्रीराम के आने की सूचना देते हैं। माता के आदेशानुसार अशोक वाटिका में सुन्दर फलों को खाते हैं। वहां ‌के रखवालों के विरोध करने पर उन्हें मारपीट देते हैं।

 

अंत में रावण पुत्र इन्द्रजीत आता है और ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर हनुमान‌जी को बांधकर रावण के दरवार में ले जाता है। रावण के आदेश पर हनुमान के पूंछ में आग लगा ते है। हनुमान जी के मुख से प्रभु श्री राम के प्रशंसा को सुन राहुल क्रोध में आकर श्री हनुमान जी के पूंछ में आग लगा देने का आदेश देते हैं। इसके बाद श्री हनुमान जी अपने पूछने लगे आग से पूरी लंका को जला डालते हैं। पूरी लंका नगरी जलकर राख हो जाती है। इस दौरान कोषाध्यक्ष रोहित अग्रवाल, प्रबन्धक वीरेश राम वर्मा, उपप्रबंधक मयंक तिवारी, विश्वम्भर गुप्ता, डॉ प्रेम तिवारी, राम सिंह यादव आदि उपस्थित रहे।

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Author: Bakwas News

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