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बदलते हुए परिवेश में मनोविज्ञान साहित्य में समाहित : प्रो. नारायण

साहित्य के नवलेखन में वर्तमान परिवेश और संस्कृति का समायोजन कर लेखन की आवश्यकता आन पड़ी है। जो बदले हुए परिवेश में समाज के लिए उपयोगी होगा। बदलते हुए परिवेश में मनोविज्ञान साहित्य में समाहित हो। यही कार्य मुंशी प्रेमचंद्र ने अपने साहित्य साधना में की थी। उक्त बातें रविवार बोधगया के होटल आनंद इंटरनेशनल में शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित दीपक कुमार द्वारा लिखित पुस्तक ‘मन के मनके काव्य संकलन के विमोचन के मौके पर मुख्य अतिथि गया कॉलेज गया के अंग्रेजी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो० केके नारायण ने कही। अतिथियों ने विधिवत तरीके से पुस्तक का विमोचन किया। हिन्दी साहित्य सम्मेलन गया के अध्यक्ष सुरेन्द्र सिंह सुरेन्द्र ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। नवसृजित जिला स्कूल के प्राचार्य डॉ रंगनाथ दिवाकर ने कहा कि जब मन का संबंध चित्त से होता है तो व्यक्ति की बुद्धि सकारात्मक होती है और उसका साकारात्मक प्रतिफल नजर आता है। हिन्दी विभाग के सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष डॉ रमेश कुमार ने कहा कि ‘मन के मनके में परिवेश से जुड़े अनुभवों की पूर्ण झलक है और इसमें हिन्दी, उर्दू व संस्कृत तीनों भाषाओं का सम्मिलन नज़र आता है। राजभाषा विभाग पटना के डॉ विजय कुमार शांडिल्य ने वर्तमान संदर्भ से इस पुस्तक को हिन्दी को नवजीवन प्रदान करनेवाला बताया और उसकी समीक्षा लिखकर इसे राजभाषा विभाग मंत्रिमंडल सचिवालय में प्रकाशित करने की बातें कहीं। इस मौके पर सासाराम के डॉ अनुज कुमार, चितरंजन भारती, अरविंद कुमार सहित अन्य मौजूद थे।

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Author: Bakwas News

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