जेठ बीतने के बाद आषाढ़ चढ़ने के साथ ही बारिश की राह देख रहे किसानों की आँखे अब पथराने लगी हैं। आषाढ़ और सावन में बारिश न होने से निराश किसान अब मानकर चलने लगे हैं कि हमारी धान की फसल सूखे की भेंट चढ़ गई। तमाम मौसम विज्ञानियों के दावे और आंकड़े हवा हवाई हो गए हैं। पिछले दिनों किसी तरह से थोड़ी बहुत रोपी गई धान की नर्सरी अब बारिश के अभाव में झुलस रही है। सरकारी संसाधनो मसलन नहरों ,सरकारी नलकुपो एवं बिजली के दगा देने के बाद किसानों की कूवत नही है कि लगभग 100 रुपये लीटर के महंगे डीजल को खरीद कर निजी पम्पिंग सेट को चला सके। ऐसे में विवश किसान अवर्षण के कारण सूख रही धान की फसल को मन मसोस कर देखने को मजबूर है
पूर्व में मौसम विभाग ने बताया था कि 15 जून तक मानसून पुर्वी उत्तर प्रदेश मे दस्तक दे देगी और झमाझम बारिश शुरू हो जाएगी लेकिन झमाझम तो दूर अब तक लगता है मानसून का दूर दूर तक कही अता-पता नही है | जबकि किसान आसमान की ओर सिर उठाकर हवा में गाहे बगाहे तैर रही बादलों से पानी बरसने की उम्मीद लगाए रहते हैं लेकिन प्रतिदिन या यों कहें कि दो महीनों से उनकी उम्मीद धूल धूसरित होकर रह गई है। अच्छे पानी बरसने की आस में किसानों ने मई और जून महीनों में धान की नर्सरी और संडा विधि की रोपाई कर ली थी।आज स्थिति यह है कि नहरों के आसपास खेतो को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश बारिश आधारित खेतो में धान की रोपाई न होने के कारण धान की नर्सरी सूख गई हैं।
जिले मे धान का गढ कहे जाने वाला बाँगर क्षेत्र के अधिकांश इलाको जैसे सदर तहसील का गड़वार ब्लाक तथा बेरुआरबारी ब्लाक , रसड़ा तहसील का चिलकहर ब्लाक , बेल्थरा तहसील के सियर ब्लाक एवं नगरा ब्लाक तथा सिकन्दरपुर तहसील के नवानगर एवं पंदह ब्लाको मे धान की भरपूर पैदवार होतीहै |इन ब्लाको मे कुछ हिस्से तो नहरो के दायरे मे आते हैं लेकिन कुछ हिस्से ऐसे हैं जो केवल वर्षा पर आधारित हैं |लेकिन आज तक की स्थिति यह है कि मानसून न आने और बारिश के आभाव की स्थिति मे करीब करीब 40%-50 % किसानो की धान की रोपाई या तो पिछड़ चुकी है या रोपाई ही नही हुई है।ऐसे में अब किसान सूखे की स्थिति को भांप कर रोपाई कराने से परहेज कर रहे हैं।किसानों का कहना है कि फसल तो पिछड़ ही गई रोपाई कराने के बाद भी पैदावार कैसी होगी कह नही सकते हैं।दूसरा यह है कि अगर पैदावार नही हुई तो रोपाई ,जुताई ,खाद बीज का भी खर्च नही निकल पाएगा।