अधिकारियों की अनदेखी की वजह आमस में आंगनवाड़ी केंद्रों का बुरा हाल है। यहां की सेविकाएं मनमर्जी तरीके से केंद्रों को संचालित करती हैं। अधिकांश केंद्र के बच्चे मैले कुचैले घरुलू कपड़े पहनकर आते हैं। जबकि सेविकाओं को इसकी कोई फिक्र नहीं होती। ग्रामीणों की माने तो केंद्र न तो समय पर खुलते और हीं समय से बंद होते हैं। सुदूर गांव टोले में सचलित केंद्रों का और भी बुरा हाल है। इनकी सेविका सहायिकाएं जैसे तैसे बच्चों को पोषाहार दे केंद्र बंद कर घर चली जाती हैं।
अभिभावकों का कहना है कि जिस तरह स्कूली व्यवस्थाओं को ठीक करने में अधिकारी ध्यान दे रहे हैं, उसी तरह इस ओर भी ध्यान देने की जरूरत है। अन्यथा लाखों रुपए खर्च के बाद भी व्यवस्थाएं सिर्फ कागजों में सिमटी हुई है। केंद्रों में व्याप्त कुव्यवस्थाओं को ठीक करने की जिम्मेवारी सीडीपीओ और लेडी सुपरवाइजरों को है। लेकिन ये जांच की सिर्फ खानापूर्ति कर विभाग को भेज देते हैं। जिसमें व्यवस्था की सच्चाई को छुपा दी जाती है।
चालीस की जगह दस बीस होते हैं बच्चे
प्रत्येक केंद्र में 40 बच्चों का नामांकन है। लेकिन इनकी उपस्थिति आवंटन के आधार पर तय की जाती है। विभागीय अधिकारी के मुताबिक अभी 34 बच्चों को ही पढ़ाया जाना है। हालांकि कुछ केंद्र को छोड़ कर अधिकतर में दस बीस की ही उपस्थिति रहती है। जबकि हाजिरी विभाग द्वारा तय बच्चों की ही बनाई जाती है।
सीडीपीओ मंजू कुमारी सिंह बताती हैं कि ड्रेस के लिए सेविकाओं के माध्यम से अभिभावकों को नकद भुगतान कराया जाता है। जिसका उपयोग अभभावक घरेलू काम में कर लिया करते हैं लाख समझाने और दवाब के बाद भी बच्चों का ड्रेस नहीं बनवाते। हर माह केंद्रों की जांच की जाती है। त्रुटि मिलने पर सेविकाओं को सुधार का निर्देश भी दिया जाता है।