कलेर,अरवल। अयोध्या में श्रीरामलला के प्राण प्रतिष्ठा को लेकर सोमवार को अरवल जिले के ऐतिहासिक मधुश्रवां शिव मंदिर, मोथा, कोयल भुपत ठाकुरबाडी समेत अनेकों मंदिरों को भव्य तरीके से सजा कर पुजा अर्चना किया गया | मालुम हो कि जिले के ऐतिहासिक मधुश्रावां धाम इतिहास के पन्नो पर अपना स्थान रखने वाला एक सुरम्य स्थल है। यहां के लोगों को गर्व है इस धरती पर गर्व है। धार्मिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक, सामाजिक तथा आर्थिक क्षेत्रों में भी इसकी अपनी पहचान है। मधुश्रवां के लोगों में चर्चा का विषय है। यहीं पर मधु नामक राक्षस का वध हुआ था। आज भी यहां तालाब में स्नान करने तथा बाबा भोले नाथ का दर्शन करने से लोभ, मोह, क्रोध आदि दुर्गुण नष्ट हो जाते हैं तथा दैविक शक्ति का समावेश होता है। पौराणिक एवं प्राचीन धर्म स्थल होने का प्रमाण धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। धार्मिक ग्रंथों एवं जनश्रुतियों के अनुसार कालांतार में ब्रहमपुत्र मृगुमुनी गंगा नदी के तट पर तपस्या में लीन थे। उनके साथ उनकी पत्छनी फूलोत्मा रहती थी। मुनी के स्नान करने जाने के दौरान उनकी पत्ध्छनी को एक राक्षस उठाकर आकाश मार्ग से भागने लगा। मृगुमुनी ने कुश का एक दिव्य वाण बना कर राक्षस पर छोड़ा और राक्षस घायल होकर जमीन पर गिर पड़ा। मुनी की पत्नी गर्भवती थी और उसने एक सुन्दर बालक को जन्म दिया जिसका नाम च्यवन रखा गया।
उसी वक्त इस पौराणिक स्थल का नामाकरण मधुश्रवा किया गया। यह भी बताया जाता है कि प्रसव काल के दौरान मुनी की पत्नी के शरीर से जो रक्तश्राव हुआ उससे वहां पर एक तालाब का निर्माण हुआ। मधुश्रवा स्थित इस तालाब के बारे में भी एक धार्मिक मान्यता है। जनश्रुतियों के अनुसार जिस स्त्री को संतान नहीं होता है वह अगर सच्चे मन से तालाब में स्नान कर भगवान शंकर की पूजा करती है तो उसकी सारी मन्नतें पूर्ण होती है। इतना ही नहीं उक्त तालाब में स्नान करने से कुष्ठ व चर्म रोग सहित अन्य बीमारियां भी दूर होती है। जनश्रुति के अनुसार मर्यादा पुरुषोतम श्री राम भगवान ने भी गया पिंडदान करने जाते समय पत्नी सीता के साथ यहां रुककर बाबा मधेश्वरनाथ की पूजा अर्चना की थी। यहां सावन माह में शिवभक्त पहुंचकर बाबा मधेश्वरनाथ पर जलाभिषेक करते है|