- मिर्जापुर, चंदौली, भदोही, सोनभद्र, गाजीपुर व बलिया शामिल
- 10 हजार 550 हेक्टेयर में खेती, तेजी से बन रहा कलस्टर
- चार वर्ष में एक हेक्टेयर पर 15 हजार का प्रोत्साहन
- किसानों को गाय पालने की होगी अनिवार्यता
बलिया। पूर्वांचल के आधा दर्जन गंगा के किनारे बसे जिलों में प्राकृतिक खेती कराने के लिए इन जनपद के कृषि विभाग तैयारी में पूर्ण रूप से जुट गया है। इनमें मिर्जापुर, चंदौली, भदोही, सोनभद्र, गाजीपुर व बलिया के 29 ब्लॉकों में 10 हजार 550 हेक्टेयर में गोवंश आधारित प्राकृतिक खेती का रकबा निर्धारित किया गया है। कृषि विभाग ब्लॉकवार कलस्टर बन रहा है। खेती करने वाले किसानों को गाय रखना आवश्यक है, खेती रसायनमुक्त देशी पद्धति से होगी। किसानों को प्रोत्साहन के रूप में प्रति हेक्टेयर चार वर्षों में 15 हजार रुपये दिया जायेगा।
अधिक ऊपज के लालच में किसान रासायनिक उर्वरक व कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग कर उत्पादन तो बढ़ा लिए हैं। लेकिन भूमि की उपजाऊ शक्ति निरंतर कमी होती जा रही है या यूं कहें उत्पादन स्थित हो गया है। रसायनों के प्रयोग से इन अनाजों को ग्रहण करने वाले लोग विभिन्न बीमारियों की चपेट में आने लगे हैं। वहीं पर्यारण संतुलन भी बिगड़ता जा रहा है। सरकार पर्यावरण संरक्षण व देशी बीजों से गोवंश आधारित देशी पद्धति से फसल उत्पादन की योजना शुरू की है, यह प्राचीन भारतीय पद्धति है। ऐसी खेती में गोबर की खाद, कम्पोस्ट, फसलों के अवशेष और प्रकृति में उपलब्ध विभिन्न प्रकार के खनिजों के माध्यम से पौधों को पोषक तत्व दिए जायेंगे ताकि पर्यावरण की शुद्धता व भूमि का प्राकृतिक स्वरूप बना रहे।
प्राचीन बीज की ही होगी बुआई
बलिया। प्राकृतिक खेती में हाब्रिड का प्रयोग करने की मनाही रहेगी। किसान प्राचीन समय से बुआई के लिए प्रयोग हो रहे घर के बीज ही प्राकृतिक तरीके से बोयेंगे। इसमें गंगा किनारे खासकर बोए जाने वाले मक्का, ज्वार, बाजरा, मंडुआ, रागी, कोदो, चीना, सांवा, टांगुन, कुटकी के साथ ही दलहनी में तीसी, सरसो, सब्जियों में देशी प्रजाति के टमाटर, गोभी, बैगन, मरीचा की खेती करायी जानी है। वैसे अपने यहां 1960 से पूर्व इस विधि से खेती होती रही है।
कलस्टर में तैनात होंगे प्रशिक्षक
बलिया। कृषि विभाग की ओर से प्रत्येक कलस्टर में किसानों को प्राकृतिक तौर तरीके से खेती के गुर सिखाने के लिए प्रत्येक कलस्टर में विशेषज्ञ प्रशिक्षक(फील्ड एग्रीकल्चर) तैनात किए जायेंगे। यह किसानों को गोवंश आधारित देशी पद्धति से खेती के गुर सिखाने के साथ ही इन्हें गोमूत्र, गोबर से फसलों में पोषक तत्व दिए जाने के सलीके बतायेंगे।
गोवंश आधारित देशी पद्धति से आयेगी समृद्धि
बलिया। भारत कृषि प्रधान देश है और गोवंश आधारित खेती किसानी से बड़ा उत्पादन लेता रहा है। गुलामी के दौर में इसका पराभव होना शुरू हो गया। आजादी के बाद हरित क्रांति से खाद्यान्न में आत्मनिर्भता तो हो गये। लेकिन इसमें प्रयोग होने वाले हानिकारक रसायनों का दुष्प्रभाव से बच नहीं पाये। ऐसे में प्राकृति खेती आमजन के साथ ही पर्यावरण के लिए अति आवश्यक है। परम्परागत गोवंश आधारित खेती से ही देश की निरोगतापूर्ण समृद्धि मिल सकेगी।
मिट्टी की सेहत जांच कराना जरूरी
बलिया। प्राकृतिक खेती के लिए किसानों को मिट्टी की सेहत का जांच कराना आवश्यक है। किसान निजी लैब व कृषि विभाग से सम्पर्क कर जांच करवा सकते हैं। इससे मिट्टी में किस तत्व की कमी है इसकी जानकारी मिल सकेगी। इसके बाद उस तत्व के लिए गोबर, गोमूत्र के साथ प्रकृति के किस खनिज को मिलाया जायेगा यह विशेषज्ञ बतायेंगे। इससे मिट्टी की बिगड़ी सेहत ठीक होकर प्राकृतिक स्वरूप में आयेगी और पैदावार बढ़ेगा।
जिलों के ब्लॉकवार प्राकृतिक खेती का लक्ष्य
जनपद ब्लॉक लक्ष्य हेक्टेयर में
सोनभद्र 2 1000
भदोही 2 1000
मिर्जापुर 8 450
चंदौली 3 1000
गाजीपुर 9 4600
बलिया 5 2500