बलिया। संदीपाचार्य ‘मधुकर ने कहा कि कभी-कभी ऋषि मुनियों का श्राप भी जीव के लिए कल्याणकारी बन जाता है। जबकि श्राप देते समय जीव को बुरा लगता है। बताया कि अहिल्या को अत्रि मुनि ने श्राप दे दिया कि तुम पत्थर बन जाओ, अहिल्या तुरन्त पत्थर बन गई। लेकिन कालांतर में प्रभु श्रीराम के पैर की रज से स्पर्श से अहिल्या का उद्धार हुआ और वह प्रभु का दर्शन कर पति लोक को चली गई।
बैरिया तहसील के नवका गांव में चल रहे नौ दिवसीय रुद्रमहायज्ञ में रविवार की शाम प्रवचन में ‘मधुकर ने जनकपुर प्रसंग में बताया कि प्रभु श्रीराम को जनकपुर घूमने का मन था, लेकिन उन्होंने लक्ष्मण का सहारा लिया और गुरु विश्वामित्र से कहे कि ‘नाथ लखन जनकपुर देखन चहही प्रभु संकोच डर प्रकट न करहीं, जो राउर आयसु मैं पाऊं, नगर दिखाई तुरत लै आऊं। ऐसे हैं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जो अपनी इच्छा पूर्ति के लिए भी दूसरे के सहारे गुरु से आज्ञा लेते हैं। मनुष्य को किसी काम में अपने से बड़ों से आज्ञा लेनी चाहिए।
पीठाधीश्वर वेंकटेश महाराज ने बताया कि श्रीमद्भागवत में जो बातें सुखदेवजी ने बताई है वह आज घोर कलिकाल में जीव के लिए कल्याणकारी है। श्रद्धालुओं को बताया कि इसी कथा से राजा परीक्षित को ज्ञान प्राप्त हुआ, तो वही महापापी धुंधकारी का भी कल्याण हो गया। रुद्रमहायज्ञ में पहुंचे श्रद्धालु देर रात तक मानस व भागवत कथा रूपी भक्ति सरिता में गोता लगाते रहे। इस मौके पर शिव ध्यान सिंह, रवि प्रताप सिंह, गरज नारायण सिंह, करण कुमार, मुन्नी सिंह, चंदन सिंह, वीरेंद्र सिंह आदि थे।